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स्वागत है आप सभी का हमारे वेबसाइट Rasonet में। आज के पोस्ट में मैं आपको गणित शिक्षण को रुचिकर बनाने का कुछ उपाय बताने वाला हूं।
गणित शिक्षण को रोचक बनाने के लिए किन किन उपायों का उपयोग किया जा सकता है? | Ganit shikshan ko rochak bnane ka upay
सामान्यत: गणित के विषय में निम्नलिखित गलत धारणाएं पाई जाती है:-
1. गणित एक नीरस, उबाऊ विषय है जिसकी अधिकांश बातें अमूर्त होती है। इससे बच्चों में एवं शिक्षकों में भी भय बना रहता है।
2. गणित को समझने के लिए खास तरह के दिमाग की जरूरत होती है जो सभी बच्चों में नहीं होता है अर्थात कुछ ही बच्चे खास दिमाग रखने के कारण गणित के प्रति रुचि रखते हैं।
3. गणित के शिक्षकों की छवि भी बच्चों के मन में अलग सी पाई गई। वे गंभीर किस्म के भय बढ़ाने वाले, कम अंक देने वाले और कभी नहीं मुस्कुराने वाले होते हैं।
4. गणित विषय सिर्फ लड़कों के लिए है, लड़कियां गणित नहीं सीख सकती है, लड़कियां सिर्फ विज्ञान ही पढ़ सकती है।
उपर्युक्त प्रश्नों की गहराई में जाने से प्राथमिक स्तर पर गणित के अध्ययन के लिए निम्नांकित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक प्रतीत होता है:-
1. अमूर्त को मूर्ति के साथ जोड़ना :- गणित अमूर्त विषय है (यानी कि गणित को हम देख नहीं सकते हैं)।
उसकी यह विशिष्टता भी है परंतु प्राथमिक स्तर पर बच्चों को गणित की अमूर्तता को विभिन्न घटना, उदाहरण के द्वारा समझाने की जरूरत होती है।
जैसे 5 कहने से मस्तिष्क में कोई बिम्ब नहीं उभरता है, किंतु जब 5 को वस्तुओं से जोड़ा जाए। जैसे पांच केला, 5 बकरी तो संख्या स्पष्ट हो जाती है। खेल, पहेली, ठोस उदाहरण से जोड़कर गणित का अध्यापन किया जाना चाहिए अर्थात गणित को मूर्त वस्तुओं से जोड़ कर शिक्षा देना चाहिए।
2. बच्चों के पूर्वज्ञान एवं अनुभव को आधार बनाना:- बच्चा स्कूल में प्रवेश करने से पहले ढेर सारी बातें जानता रहता है लेकिन वह उसे प्रकट नहीं कर पाता है। कम - अधिक, छोटा -बड़ा चीजों को जमा करना, मापना, गिनती करना, डिब्बे में भरना आदि अनेक कार्यों को उसे अनुभव और ज्ञान होता है।
यदि शिक्षक बच्चों के अनुभव और ज्ञान को टटोलते हुए उसको आधार बनाकर आगे बढ़े तो गणितय समझ बनाना आसान हो जाएगा।
3. गणित में अवधारणा का महत्व:- आमतौर पर गणित की कक्षाओं में हम गणित के नियम, सूत्र रट देते हैं, पर सूत्र नियम कैसे बने, क्यों बने, इस पर प्रकाश नहीं डालते और यह हम उन्हें नहीं बताते।
परिणाम स्वरूप बच्चा पूरी अवधारणा से अपरिचित रह जाता है।
गणित पढ़ाने में अवधारणाओं की स्थापना सबसे महत्वपूर्ण रचना है। प्राथमिक स्तर से ही अवधारणाओं को विभिन्न उदाहरणों में स्पष्ट करने स्थापित करने की जरूरत होती है।
अवधारणा की स्थापना में अभ्यास का बड़ा महत्व है। स्थूल उदाहरण से किसी बच्चे को कुर्सी की अवधारणा देनी हो तो हम उसके गुण बताकर एक उदाहरण दिखा सकते हैं।
परंतु मात्र एक कुर्सी देखने से उसकी अवधारणा पक्की नहीं होगी।
कुछ कुर्सी चार पांव की होती है, तो घूमने वाले कुर्सियों में एक पांव रहता है।
किसी में हाथ रखने वाला होता है तो किसी में नहीं। सिर्फ परिभाषा कहने और कुछ गुणों को बताने से अवधारणा पक्की नहीं होती है।
इसलिए बच्चे को गणित की शिक्षा आगमन विधि से देनी चाहिए। आगमन विधि से बच्चों के मस्तिष्क में ज्ञान स्थायी हो जाता है।
4. गलतियों के प्रति दृष्टिकोण:- आमतौर पर गणित के शिक्षक गलतियों को सहायक नहीं मानते हैं और इसके प्रति नकारात्मक रूप रखते हैं।
इससे बच्चे हतोत्साहित होते है और गणित के प्रति अपने मन में भय बना लेता है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि वयस्कों के सीखने के तरीकों से बच्चे के सीखने समझने के तरीके भिन्न हो सकते हैं।
इसलिए शिक्षकों और अभिभावकों को गलती के प्रति नई सोच बनाने की जरूरत है।
बच्च्चो के सीखने में गलतियों का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। जब हम बड़े होने के बावजूद गलतियां करने से ही कुछ सीखते हैं, तो बच्चों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि बच्चे एक बार में ही बिना गलती किए सीख जाएंगे।
इसलिए शिक्षकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों द्वारा की गई गलतियां गणित शिक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अतः हमें बच्चों को नए-नए उदाहरण के द्वारा अवधारणा को स्पष्ट करवाना चाहिए ताकि बच्चों में विषय वस्तु की अवधारणा स्पष्ट हो सके।
सभी गलतियां अज्ञानता नहीं है बल्कि सीखने की ओर बढ़ते हुए कदम है। गलतियां बताती हैं कि बच्चे पूरी तरह अनजान नहीं है बल्कि कुछ न कुछ अवश्य जानता है।
यदि शिक्षक चतुर हो तो वह बच्चे की गलती के बीच एक तारतम्य स्थापित कर यह जानने में सफल हो सकता है कि किसी खास बच्चे से खास तरह की गलती अधिक होती है।
अगर उसे सुधार दिया जाए तो वह तेजी से गणित सीखने का काम कर सकता है।
5. गणित विषय के प्रति बच्चों की गलत धारणाएं :- अक्सर बच्चे यही सोचते हैं कि गणित विषय सिर्फ लड़कों के लिए है, लड़कियां गणित के प्रश्नों को हल नहीं कर सकती है।
लड़कियों के लिए बस घर का काम और गृह विज्ञान है। परंतु यह गलत धारणाओं में से एक है। लड़कियां सभी क्षेत्रों में लड़कों से काफी आगे बढ़ रही है। तो हमें अपने मन से या सोच निकाल देना चाहिए कि गणित सिर्फ लड़को के लिए है।
6. गणित के शिक्षकों की भूमिका:- ऊपर के सभी बिंदु शिक्षक की भूमिका से जुड़े हैं। उनके अलावा गणित के शिक्षकों की जवाबदेही होती है कि वे सरल एवं आनंददाई तरीके से बात को रखने का प्रयत्न करें।
बच्चे को प्रश्न पूछने की आजादी दे और उसकी क्रिया को सकारात्मक रूप में लें।
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इस तरह से हम गणित शिक्षण को रोचक बना सकते हैं और बच्चों के ज्ञान को स्थायी बना सकते हैं।
दोस्तों, आज के पोस्ट पहुंच में मैंने आपको गणित शिक्षण को रोचक बनाने के उपायों को बताया।
मुझे उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा। अगर इस पोस्ट से संबंधित आपके मन में कोई भी प्रश्न तो आप बेझिझक कमेंट करके पूछ सकते हैं। अगर यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
हमारा पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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