पर्यावरण किस प्रकार हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं?

पर्यावरण किस प्रकार हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं?

√ . सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव :-व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित सामाजिक पर्यावरणीय कारक है:- 



1. अभिभावकों का प्रभाव :-असह्य पीड़ा के बाद मां जब अपने नवजात शिशु को प्राप्त कर लेती है, तो वह केवल अपनी पीड़ा को ही नहीं भुला देती बल्कि वह अपने शिशु की खुशी के लिए पलके बिछाने का प्रयास करने लगती है।


बालक की जो भी आवश्यकताएं होती है उन्हें उसके अभिभावक तन मन धन से पूर्ण करने का प्रयत्न करते रहते हैं।


 बालक के अभिभावकों का जैसा स्वभाव, चरित्र आदतें, व्यवहार तथा पारस्परिक संबंध होता है वैसा ही बालक का व्यक्तित्व विकसित होता है।



2. पड़ोसी :-  बालक के व्यक्तित्व पर उसके आस - पड़ोस का प्रभाव भी पड़ता है। बालकों में खेलने की इच्छा प्रबल होती है जिसके लिए उसे अपने पड़ोसियों के यहां जाना पड़ता है या पड़ोस के लोग उसके यहां आते हैं।


 कहने का तात्पर्य यह है कि उनका काफी समय पड़ोसियों के साथ व्यतीत होता है। यदि पड़ोसियों का व्यवहार, आदत एवं स्वभाव अच्छे हैं तो बालक का व्यक्तित्व सुचारू रूप से विकसित होगा अन्यथा उनमें बुरे आदतें पड़ जाएंगे। 


बालक जब थोड़ा और निश्चत हो जाता है तो पड़ोसियों से उसका संपर्क बढ़ता है। यदि पड़ोसी अच्छे विचार के व्यक्तित्व है तो बालक  के व्यक्तित्व में अच्छे गुणों का विकास होता है अन्यथा नहीं।


3. पारिवारिक संबंध :- अभिभावकों के अलावा बालक पर अन्य सदस्यों का भी विशेष प्रभाव पड़ता है। 

यदि परिवार के संपूर्ण सदस्य चरित्रवान, परिश्रमी, बुद्धिमान तथा लड़ाई झगड़े से दूर रहने वाले होते हैं तो बालक के व्यक्तित्व में भी इन गुणों का समावेश होता है तथा यदि परिवार के सदस्यों ने यह गुण नहीं होते तो बालक के व्यक्तित्व में विभिन्न अवगुणों का विकास हो जाता है। 


इस प्रकार बालक के व्यक्तित्व पर पारिवारिक संबंधों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।


4. इकलौता पुत्र:- अक्सर यह देखा जाता है कि यदि किसी माता-पिता की केवल एक ही संतान होती है तो माता-पिता आवश्यकता से अधिक लाड प्यार देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बालक हठी और असमाजिक हो जाता है। 


इसलिए प्रत्येक माता-पिता को बालक से प्यार तथा उसका पालन पषण संतुलित ढंग से करना चाहिए।


5. बालक का अपने समूह में कार्य :- एक शिशु जब बाल्यावस्था में प्रवेश करता है तो वह खेलने के लिए अपना मित्र बना लेता है। इस तरह अनेक मित्रों का एक समूह बन जाता है।


 इस समूह में जिस बालक का स्वास्थ्य अच्छा होता है तथा वह साहसी प्रकृति का होता है वह बालक समस्त बालकों का नेता बन जाता है तथा अन्य बालक उसका अनुसरण करने लगते हैं।


 इसका परिणाम यह होता है कि नेतृत्व करने वाले बालक की भविष्य में आत्मविश्वास नेतृत्व, साहस, आत्मनिर्भरता तथा सामाजिक गुण विकसित हो जाते।


  6 . पुस्तकें तथा चित्र :- बालक जब शिशु रूप में होता है तो वह तस्वीरो तथा पुस्तकों से खेलता है किंतु और बड़ा हो जाने पर पुस्तकों तथा तस्वीरों से ज्ञान प्राप्त करता है। 


फलस्वरुप पुस्तकों तथा तस्वीरों का उसके व्यक्तित्व पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। 

बालक को यदि अच्छी - अच्छी पुस्तकें पढ़ने को मिलती है तथा अच्छे-अच्छे चित्र देखने को मिलते हैं तो उसका व्यक्तित्व में अच्छे गुणों का विकास होता है।


7. विद्यालय :- जिस प्रकार बालक के परिवार का उसके व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है, उसी प्रकार विद्यालय में उसके व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। शिक्षकों का बालक के प्रति व्यवहार का बालक के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 


विद्यालय का पर्यावरण भी उसे प्रभावित करता है। यदि विद्यालय का पर्यावरण अच्छा होता है तो वहां के विद्यालय तथा शिक्षक भी अच्छे होते हैं।

  तो बालक के व्यक्तित्व में अच्छे-अच्छे सामाजिक तथा नैतिक गुणों का विकास होता है।


8. मंदिर तथा चर्च :- बालक को किशोरावस्था में उसे मंदिर तथा चर्च अत्यधिक प्रभावित करते हैं। बालक किशोरावस्था में मंदिर तथा चर्च में जा कर पूजा करता है तथा विभिन्न प्रकार के प्रवचन तथा उपदेश को सुनता है। 

इससे उसके व्यक्तित्व के दिशा में विकास होता है।


 इस प्रकार बालक के व्यक्तित्व में मंदिर तथा चर्च भी बहुत प्रभाव डाल दें क्योंकि उन जगहों पर उसका सत्संग महान पुरुषों से होता है।


9. क्लब और सिनेमा :- समाजीकरण की प्रक्रिया में क्लब तथा सिनेमा बहुत प्रभाव डालते हैं। बालक के व्यक्तित्व पर क्लब तथा सीनेमा विशिष्ट रूप से प्रभाव डालते हैं।

 क्योंकि यह केवल व्यक्ति का मनोरंजन ही नहीं करते बल्कि इनसे व्यक्ति का शारीरिक तथा सामाजिक विकास भी होता है।


10. आर्थिक स्थिति :-  बालक के व्यक्तित्व पर आर्थिक स्थिति का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

 बालक के परिवार की जिस प्रकार की आर्थिक स्थिति होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व विकसित होता है। अक्सर दरिद्र परिवार के बालकों में हीनता की भावना तथा असुरक्षित भाव विकसित हो जाते हैं। 


फलस्वरुप उनका व्यक्तित्व उचित रूप से विकसित नहीं हो पाता है। इसके विपरीत समृद्ध परिवार के बालकों को पौष्टिक भोजन मिलता है।


 पढ़ने के लिए अच्छा अवसर प्राप्त होता है। उससे उनका व्यक्तित्व उचित रूप से विकसित होता है।


यहां मुख्य बात यह है कि यदि इन बालकों का उचित प्रदर्शन नहीं होता तो उनका भी व्यक्तित्व उचित रूप से विकसित नहीं हो सकता।


 इसके विपरीत यदि गरीब परिवार के बालकों का उचित प्रदर्शन किया जाए तो उनका व्यक्तित्व उचित रूप से विकसित होता है। 

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10. सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रभाव :- संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व के स्वरूप को निश्चित करती है। जिस प्रकार की संस्कृति में बालक का पालन पोषण होता है वह उसी प्रकार का हो जाता है। यह समझने के लिए संस्कृति को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:- 


1. भौतिक संस्कृति और सभ्यता और

2. अभौतिक संस्कृति और सभ्यता


भौतिक संस्कृति में उदाहरण के लिए जो देश घड़ियों का आविष्कार कर लेता है। वहां के निवासी अपना जीवन यापन अमित रूप से करने लगते हैं। अभौतिक संस्कृति जिसके अंदर जन रीतियाँ, रूढ़ियां, प्रथाएं, संस्थाएं आदि आती है।


व्यक्तित्व के विकास पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए जिस संस्कृति में पति सेवा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है वहां की स्त्रियाँ पति के आज्ञा का पालन करना तथा सेवा करना अपना आवश्यक धर्म समझती है। 


√ भौतिकी या भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव ;- मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास पर भौतिक पर्यावरण का अतिरिक्त प्रभाव पड़ता है। जिस स्थान की जलवायु ठंडी तथा प्रकृति सुंदर होती है। 


वहां के निवासी सुंदर, स्वस्थ, परिश्रमी तथा बुद्धिमान होते हैं। इसके विपरीत जिस जगह की जलवायु गर्म होती हैं वहां के निवासी अस्वस्थ, काले, आलसी तथा कम बुद्धि वाले होते हैं।


 इस प्रकार से व्यक्तित्व के विकास में प्राकृतिक पर्यावरण अथवा भौतिक पर्यावरण के प्रभाव की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। 


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