हेलो दोस्तों,
स्वागत है आप सभी का हमारे वेबसाइट Rasonet में। आज की पोस्ट में मैं आपको बताने वाला हूं कि किसी भी व्यक्ति का आत्म सम्मान आखिर क्या होता है और आत्म सम्मान स्थिर होता है या परिवर्तनशील?
आपका आत्म सम्मान क्या है?
आत्म सम्मान से आप क्या समझते हैं?
' आत्म सम्मान' का तात्पर्य व्यक्ति की अपनी नजरों में इज्जत होना। एक व्यक्ति जीवन में उच्चता को तभी प्राप्त कर पाता है, जब उसकी स्वयं की नजरों में खुद की इज्जत होती है।
आत्म सम्मान की भावना का बोध, भावात्मक या संवेगात्मक एकीकरण की भावना के साथ जोड़ा जा सकता है। किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण आत्मसम्मान के द्वारा ही होता है। आत्म सम्मान से व्यक्ति स्वयं के प्रति होने वाला शोषण, कुरीतियां तथा अन्य समस्याओं से स्वयं को सुरक्षित कर सकता है।
आत्म सम्मान का उदय आत्मविश्वास से होता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति का अपने दफ्तर में शोषण हो रहा है तो वह स्वयं की सुरक्षा अपने आत्म सम्मान से कर सकता है।
आत्म सम्मान वह योग्यता है जिसके द्वारा व्यक्ति अनेक अवसरों को प्राप्त कर सकता है।
आत्म सम्मान स्थाई होता है या परिवर्तनशील?
व्यक्तियों के आत्म सम्मान में परिवर्तन होता रहता है। आत्मसम्मान स्थिर प्रत्यय नहीं है। यह देखा गया है कि व्यक्ति के जीवन में जो ऋणात्मक अनुभव होतेे हैं उसका व्यक्ति के आत्मसम्मान ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन में जो धनात्मक अनुभव होते हैं उनका उस व्यक्ति के आत्म सम्मान पर धनात्मक प्रभाव पड़ता है।
यह देखा गया है कि जब व्यक्ति के परिवार, स्कूल दफ्तर या मित्र मंडली में जब कोई कटु अनुभव होते हैं अथवा कोई समस्या होती है तब इस अवस्था में व्यक्ति का आत्म सम्मान कुछ ना कुछ गिर जाता है।
यदि व्यक्ति का आत्म सम्मान धनात्मक है तो कम धनात्मक हो जाता है और यदि व्यक्ति का आत्मसम्मान ऋणात्मक होता है तो उसका आत्मसम्मान कुछ और ऋणात्मक हो जाता है। इस प्रकार का परिवर्तन आत्मसम्मान में होता है।
यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि जब व्यक्ति की चिंता की मात्रा बढ़ जाती है। तब उस व्यक्ति का सम्मान बहुत हो महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ जाता है।
इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि व्यक्ति का आत्मसम्मान यदि धनात्मक है तब उसमें चिंता की मात्रा बढ़ने पर उसका आत्मसम्मान अधिक धनात्मक हो जाएगा।
इसी प्रकार से जब व्यक्ति का आत्मसम्मान ऋणात्मक प्रकार का है तो उस व्यक्ति का का आत्मसम्मान और अधिक ऋणात्मक प्रकार का हो जाएगा।
इसका यह अभिप्राय नहीं है कि आत्म सम्मान में परिवर्तन हर क्षण होता रहता है। वास्तविकता यह है कि आत्म सम्मान में परिवर्तन इतनी तेजी से और इतना अधिक नहीं होता।
दैनिक जीवन के अनुभव में यह देखा गया है कि व्यक्ति का आत्म सम्मान लगभग स्थिर रहता है क्योंकि हम अपने आत्म सम्मान को बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार के मैकेनिज्म का प्रयोग करते हैं। जो भी धनात्मक आत्म सम्मान वाले होते हैं वह प्रतिकूल अनुकूल परिस्थितियों और घटनाओं को याद करते रहते हैं।
इससे उनका आत्म सम्मान बना रहता है। इसी प्रकार जो ऋणात्मक आत्म सम्मान वाले होते हैं वह प्रतिकूल परिस्थितियों और घटनाओं को अधिक याद करते रहते हैं।
उसी प्रकार का आत्म सम्मान बना रहता है।
एक अन्य अध्ययन 1998 के अनुसार वाले होते हैं जो व्यक्ति ऋणात्मक आत्म सम्मान वालेेेेेेे होते हैं वह अपनी कमजोरियों का स्मरण करते रहते हैं और जो धनात्मक वाले व्यक्ति होते हैं वो अपनी शक्ति और महत्व का स्मरण अधिक करते रहते हैं।
इस कारण से उनका आत्म सम्मान जिस प्रकार का है वह उसी प्रकार का बन जाता है।
समाज में व्यक्ति धनात्मक आत्मसम्मान को अच्छा समझते हैं, इसलिए कोई भी व्यक्ति अपने आत्म सम्मान को परिवर्तित नहीं करना चाहता है। और यदि वह अपने आप सम्मान को परिवर्तित करना चाहता है तो उसकी चाहत यही होती है कि वह अपने आत्मसम्मान को धनात्मक आत्म सम्मान में परिवर्तित करें।
जिस व्यक्ति का आत्मसम्मान पहले से ही धनात्मक होता है वह व्यक्ति अपने आत्मसम्मान को और अधिक धनात्मक बनाना चाहता है।
रोजर्स की रोगी केंद्रित चिकित्सा पद्धति ( Rogers client centred therapy) में रोगी के वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म में अंतर को कम किया जाता है।
इस प्रकार से रोगी के आत्म सम्मान को बढ़ाया जाता है, किसका सम्मान कितना बढ़ेगा यह तो उपचार करने वाले व्यक्ति या रोगी पर निर्भर करता है।
अपने आत्म सम्मान को बढ़ाने के लिए लोग अपने मनपसंद के कपड़े पहनते हैं। आत्म सम्मान को बढ़ाने के लिए एक अध्ययन के अनुसार अपने विचारों को जीवन की धनात्मक दिशा में ले जाना और इसी प्रकार की सोच को विकसित करना चाहिए।
पारस्परिक अंतर क्रियाओं के संबंध में धनात्मक सोच में भी आपने सम्मान बढ़ता है। व्यक्ति का आत्मसम्मान ऋणात्मक की ओर तब बढ़ता है जब व्यक्ति के माता-पिता उसको तिरस्कृत करते हैं।
उसको अच्छे कपड़े पहनने को नहीं मिलता है अथवा उसकी पसंद के अच्छे कपड़े पहनने को नहीं मिलते हैं। व्यक्ति का निष्पादन जब दुर्बल प्रकार का होता है तब भी उसका आत्मसम्मान ऋणात्मक की ओर बढ़ता है।
यह भी देखा गया है कि जब व्यक्ति के पारस्परिक संबंध दुर्बल या खराब होते हैं तब भी उसका आत्म सम्मान ऋणात्मक की ओर बढ़ता है या परिवर्तित होता है।
अतः आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं चाहे तो वह ऊपर दिए गए तरीकों से अपने आप सम्मान को बढ़ा सकता है। माता-पिता शिक्षको और साथी मित्रों को चाहिए कि उसको अपनाएं जिससे कि आपने सम्मान बढ़ता है।
तो दोस्तों, आज की पोस्ट में मैंने आपको आत्म सम्मान के बारे में बताया और आत्म सम्मान स्थायी हैं या परिवर्तनशील उसके बारे मेंं बताया। आपको यह पोस्ट कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अगर आपके मन में इस पोस्टर से संबंधित कोई भी प्रश्नन हो तो बेझिझक कमेंट करके पूछ सकते हैं।
धन्यवाद।
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