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बच्चे कैसे सीखते हैं?
बच्चा जब जन्म लेता है तो वह वातावरण के संपर्क में आता है और अपनी ज्ञानेंद्रियों ( आंख, कान, नाक, त्वचा, जिह्वा ) के माध्यम से कुछ ना कुछ सीखते रहता है और अनुभव करता रहता है।
इसका मतलब बच्चे जन्म से ही कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं और यह प्रक्रिया मृत्यु तक चलती रहती है।
बच्चे किसी भी नई चीजों या घटनाओं को पूर्वज्ञान के साथ तालमेल बैठाकर ही सीखते हैं। मनुष्य का मस्तिष्क एक दूसरे से संबंधित घटनाओं को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेता है और ज्ञान को स्थायी बनाता है।
सभी बच्चे एक ही चीज के बारे में एक जैसा सोचे यह संभव नहीं है। सभी बच्चे अपने अलग-अलग अंदाज से सीखते हैं। सभी बच्चों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है अर्थात कोई भी दो बच्चे एक ही चीज के बारे में एक जैसा नहीं सोच सकते हैं।
जैसे :- अगर बच्चे के सामने बहुत सारा फल रख दिया जाए और वर्गीकरण करने के लिए कहा जाए।
तो हो सकता है कि कोई बच्चा रंग के आधार पर वर्गीकरण करें तो, कोई बच्चा आकार के आधार पर वर्गीकरण करें।
जब बच्चे किसी नई वस्तु के संपर्क में आते हैं और रूबरू होते हैं जिससे उनका सामना पहले कभी नहीं हुआ रहता है तो वह उस सूचना या ज्ञान को ग्रहण करने से इनकार कर देते हैं।
नई सूचनाओं को पूर्व सूचनाओं से जोड़कर मस्तिष्क में स्थायी ज्ञान होता है। परंतु बच्चों को गणित विषय में रुचि न होने का कारण यह है कि बच्चे को कभी भी संख्याओं को नहीं दिखाया जाता है क्योंकि गणित एक अमूर्त विषय है और शिक्षक संख्याओं से परिचित कराते समय आसपास के वस्तुओं से जोड़ते भी नहीं है जिसका परिणाम यह होता है कि बच्चे उब जाते हैं और सीखने में रुचि नहीं लेते हैं।
Sikhne ka siddhant kya hai aur sikhne ke siddhant me shikshak ki bhumika
सीखने के लिए विभिन्न और शिक्षकों के लिए इसकी उपयोगिता :-
1. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत :- इस सिद्धांत का प्रतिपादन Thorndike ने किया। सीखने में यह सिद्धांत का बहुत महत्व है।
Thorndike ने बिल्ली पर प्रयोग किया था जिसमें बिल्ली को पिंजरे में बंद करके रखा गया था और भोजन को पिंजरे के बाहर रखा गया था। बिल्ली पिंजड़े के बाहर रखे भोजन को प्राप्त करने के लिए बहुत बार पिंजरे को खोलने का प्रयत्न करती है और एक बार वह खोल भी लेती है और भोजन प्राप्त कर लेती है। इस तरह वह अगली बार भी प्रयत्न करती है और पहले से कम समय में वह खोल लेती है।
शिक्षक बच्चे को यह सिद्धांत के द्वारा बहुत कुछ सीखा सकते हैं। यह सिद्धांत मंद बुद्धि बालकों के लिए कारगर साबित होता है। जैसे बच्चों में स्थानीय मान की अवधारणा विकसित करनी है और बच्चे नहीं समझ पा रहे हैं तो बच्चे को बार बार अलग-अलग तरीके से सीखने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे थोड़ा समय तो लगेगा परंतु सफलता प्राप्त अवश्य होगी।
Thorndike ने इसके अंतर्गत तीन नियम को बताया है :-
1. तत्परता का नियम
2. प्रभाव का नियम
3.अभ्यास का नियम
√ तत्परता का नियम :- Thorndike ने इस नियम में बताया है कि किसी भी चीज को सीखने के लिए व्यक्ति का तैयार होना अति आवश्यक है। अगर बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होंगे तो उन्हें कोई भी सिखा नहीं सकता है।
√ अभ्यास का नियम :- इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि बच्चे अभ्यास के द्वारा ही सीखते हैं। अगर बच्चे अभ्यास नहीं करेंगे तो भूल जाएंगे इसलिए निरंतर अभ्यास जरूरी है।
√ प्रभाव का नियम :- Thorndike ने इस नियम में बताया कि शिक्षक को ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए जिससे कि बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से शिक्षण के लिए तैयार हो सके।
यह नियम बताता है कि बच्चे को प्रशंसा व पुरस्कार नियमित अंतराल पर देना चाहिए जिससे कि सभी बच्चे अपना 100% दे सके।
यह नियम गणित, विज्ञान और समाजशास्त्र जैसे विषय के लिए अत्यंत उपयोगी है।
शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत :- इस सिद्धांत का प्रतिपादन इवान पावलव के द्वारा दिया गया।
इन्होंने इस सिद्धांत में भूखे कुत्ते पर प्रयोग किया था। कुत्ते को एक कमरे में बांध कर रख दिया गया था और उसकी जीभ को नली से जोड़ दिया गया और नली को गिलास से जोड़ दिया गया। उसी कमरे में एक घंटी को रखा गया और घंटी बजाने पर भूखे कुत्ते को भोजन दिखाया गया जिससे लार टपक रहा था।
इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराया गया। उसके बाद इस प्रक्रिया में थोड़ा बदलाव किया गया। अब सिर्फ घंटी को बजाए जा रहा था और भोजन को नहीं दिखाया जा रहा था परंतु फिर भी कुत्ते के लार के मात्रा में कोई बदलाव नहीं आया जितना लार पहले गिरा था उतना ही बाद में भी गिरा।
घंटी का बजना (अस्वाभाविक उद्दीपक) और लार टपकना (स्वाभाविक अनुक्रिया)।
शिक्षक की भूमिका
यह सिद्धांत बच्चों को सीखने - सिखाने में काफी मदद करता है। इसका प्रयोग शिक्षक वस्तुओं को दिखाकर शब्दों से परिचित करवा सकते हैं।
इस सिद्धांत के द्वारा बालक समाजीकरण और वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।
√ सूझ या अंतर्दृष्टि का सिद्धांत :- इस सिद्धांत का प्रतिपादन कोहलर, कोफका और वर्दीमर ने किया था। इन्होंने इस सिद्धांत में एक सुल्तान नामक चिंपैंजी पर प्रयोग किया जिसमें उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रयत्न एवं भूल या अभ्यास के द्वारा नहीं सीखता बल्कि व्यक्ति में सूझ परिस्थिति को देखकर समस्या का सामना करना पड़ता है।
इस सिद्धांत के द्वारा शिक्षक बच्चों में बुद्धि, कल्पना शक्ति का विकास, तार्किक क्षमता का विकास कर सकते हैं।
यह सिद्धांत बच्चों में सृजनात्मकता को विकसित करता है।
बच्चे पूर्व अनुभव के द्वारा अपनी सूझ से नए समस्या का सामना कर सकते हैं। अतः यह सिद्धांत बच्चों के सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दोस्तों, आज के पोस्ट में मैंने आपको बताया कि बच्चे कैसे सीखते हैं, सीखने के कौन-कौन से सिद्धांत है और अध्यापक के लिए इसकी उपयोगिता क्या है? अगर आपके मन में इस पोस्ट से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो कमेंट करके बेझिझक पूछ सकते हैं। यह पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
1 comments:
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