कोठारी आयोग क्या है| कोठारी आयोग में वर्णित स्त्री शिक्षा पर सुझाव | कोठारी आयोग की सीमाएं क्या है?

 नमस्कार दोस्तों, 

आप सभी का हमारे वेबसाइट Rasonet में स्वागत है। आज की पोस्ट में मैं आपको बताऊंगा कि कोठारी आयोग क्या है? कोठारी आयोग में वर्णित स्त्री शिक्षा पर क्या सुझाव दिए गए? और इसकी सीमाएं क्या है?


कोठारी आयोग क्या है? कोठारी आयोग में वर्णित स्त्री शिक्षा पर सुझाव दिए गए? 


तो चलिए जान लेते हैं कोठारी आयोग क्या है?


कोठारी आयोग क्या है?


शिक्षा आयोग का भारतीय शिक्षा के इतिहास में अभूतपूर्व स्थान है क्योंकि इस आयोग ने देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में परिवर्तित परिवर्तित करने की सिफारिश करके शिक्षा को अत्यंत व्यावहारिक व उपयोगी बनाने का प्रयास किया।



कोठारी आयोग ने अपनी संतुष्टि यों को आठ खंडों में प्रस्तुत किया है जो निम्न प्रकार है:- 

1. राष्ट्रीय शिक्षा का लक्ष्य
2. शिक्षा के प्रशासन, वित्त व नियोजन संबंधी सुझाव
विद्यालय शिक्षा माध्यमिक शिक्षा व विश्वविद्यालयी शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में :-

3. कृषि शिक्षा व्यवसायिक शिक्षा व तकनीकी शिक्षा संबंधी सुझाव

4. 10 वर्ष के लिए समान पाठ्यक्रम
 और

शिक्षा के नवीन संरचना व स्तर

5. शिक्षा का स्तर या शिक्षक की स्थिति व सेवा शर्तो संबंधी सुझाव

6. शिक्षक शिक्षा संबंधी सुझाव

7. शैक्षिक अवसरों की समानता संबंधी सुझाव

8. स्त्री शिक्षा प्रौढ़ व सामाजिक शिक्षा संबंधी सुझाव


स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत सरकार ने अपने देश की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार उच्च शिक्षा के पुनर्गठन के लिए सर्वप्रथम 1948 ई में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया।


 उसके बाद 1952 में माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन हेतु माध्यमिक शिक्षा आयोग ( मुदालियर आयोग 1952) गठित किया गया।


विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग में विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रशासन संगठन व स्तर को ऊंचा उठाने संबंधी अपने ठोस सुझाव दिए जिनमें से कुछ सुझावों के क्रियान्वयन द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुछ सुधार भी हुआ लेकिन वांछित उद्देश्य की प्राप्ति ना हो सका।



1952 में घटित मुदालियर शिक्षा आयोग ने भी तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोषों को उजागर करते हुए उसके पुनर्गठन के लिए अनेक दो सुझाव दिए, परंतु इन सब में भी वांछित आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकी क्योंकि दोनों आयोग शिक्षा की एक ही पक्ष की ओर ध्यान देने वाले थे।



अतः ऐसे आयोग के गठन की आवश्यकता अनुभूत की गई जो विविध स्तरों पर शिक्षा के समस्त पहलुओं से संबंधित हो और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन करके देश की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा संबंधी नीतियां शिक्षा के राष्ट्रीय प्रतिमान एवं शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में विकास की संभावनाओं पर महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सुझाव दिया गया।



अतः भारत सरकार ने शिक्षा के पुनर्गठन पर संपूर्ण रूप से सोचने - समझने व देशभर के लिए समान शिक्षा नीति को निश्चित करने के उद्देश्य से 14 जुलाई 1964 को डॉ दौलत सिंह कोठारी, जो कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष थे, की अध्यक्षता में 17 सदस्य राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया ताकि दी गई अनुशंसाओं का अनुसरण करके मनुष्य के वाईक  सामाजिक  विकास की दिशा सुनिश्चित की जा सके।

 

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इसकी व्यापक उद्देश्य स्वरूप महत्व के आधार पर इसे शिक्षा आयोग 1964- 66 तथा राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964 -1966 के नाम से जाना जाता है।

इस आयोग को इसके अध्यक्ष के नाम पर कोठारी आयोग भी कहा जाता है। आयोग में कुल 14 सदस्य थे जिनमें 5 विदेशी शिक्षा विशेषज्ञ भी शामिल थे।


दोस्तों, आप मैं आपको कोठारी आयोग में स्त्री शिक्षा के लिए क्या सुझाव दिए गए वो बताने वाला हूं।


कोठारी आयोग में वर्णित स्त्री शिक्षा पर सुझाव


कोठारी आयोग के अनुसार बच्चों के चरित्र निर्माण परिवारों की उन्नति व राष्ट्रीय मानव संसाधन के विकास के लिए स्त्रियों की शिक्षा पुरुषों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है अतः स्त्री शिक्षा के प्रसार व उन्नयन के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।


सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा संबंधी आयोग के सुझाव निम्न प्रकार है


बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा का अधिक से अधिक विस्तार करने के साथ ही माध्यमिक स्तर पर भी बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार की गति इतनी तीव्र कर दी जाएगी 20 वर्ष के अंत में निम्न माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं और बालकों की संख्या का अनुपात 1:3 और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 1:2 हो जाए।


👉 बालिकाओं के लिए पृथक विद्यालयों और छात्रावास में छात्रवृत्ति यों की व्यवस्था की जाए तथा जहां महिलाओं की वजह शिक्षा की अधिक मांगो वहां अलग से महिला विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।


👉 बालिकाओं की शिक्षा के लिए शिक्षा, गृह विज्ञान और सामाजिक कार्य के पाठ्य विषयों का विस्तार करके उनको समुन्नत बनाया जाए।


👉 माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को भी विज्ञान या गणित का अध्ययन कराने के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया जाए तथा समीर व कराओ की शिक्षा देने के लिए भी उचित व्यवस्था की जाए।


👉 स्त्रियों के लिए पत्राचार पाठ्यक्रमों की व्यवस्था व प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा जाए।


दोस्तों आप मैं आपको कोठारी आयोग की सीमाओं को बताने वाला हूं।


कोठारी आयोग के सीमाएं ( limitation ) निम्नलिखित हैं:-


👉 आयोग ने प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के संगठनात्मक स्वरूप को निर्धारित करते हुए कक्षा 11 व 12 के संबंध में और अस्पष्ट सुझाव दिए।


यह स्पष्ट हो नहीं सका कि पहले से प्रचलित कक्षा 12 को माध्यमिक शिक्षा में लिया जाना है या उसे विश्वविद्यालय शिक्षा का अंग मानना है।


👉 आयोग द्वारा प्रस्तुत शिक्षा संरचना उलझी हुई और अस्पष्ट है। यही कारण है कि अगले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में 10+2+3 के समान शिक्षा संरचना घोषित की गई।


👉 आयोग द्वारा प्रस्तावित प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के सुझाव और भ्रामक प्रतीत होते हैं क्योंकि कहीं माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की बात कहीं गई है, तो कहीं करण की बात मुझ पर माध्यमिक स्तर पर की गई है, कहीं माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र अपनाने की बात कही गई है, तो कहीं इस स्तर पर अंग्रेजी, रूसी व फ्रेंच भाषाओं की शिक्षा की व्यवस्था की बात कही गई है, जिसके कारण इनके सुझावों में पंचमेल खिचड़ी की भावना निहित प्रतीत होती है।


👉 आयोग द्वारा प्रस्तावित शिक्षकों के वेतनमान और कार्यों एवं सेवा दाताओं की संतुष्टि या शिक्षकों के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं हुई।


👉 आयोग ने सामान्य शिक्षा व उच्च शिक्षा में एक और थोड़ा सक्रिय नामांकन नीति निर्धारित की वहीं दूसरी ओर चयनात्मक प्रवेश प्रणाली की सिफारिश करके सभी छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे बंद करने का भी प्रावधान कर दिया।


👉 आयोग की ज्यादातर सिफारिशे आदर्शवादी व अव्यावहारिक होने के कारण भी इसका क्रियान्वयन संभव ना हो सका।


 उदाहरण के लिए आयोग द्वारा देश में वरिष्ठ विश्वविद्यालय की स्थापना एवं विश्वविद्यालय शिक्षा के उन्नयन संबंधित सुझाव धन के अभाव में क्रियान्वित ना हो सके। इसी प्रकार स्त्री शिक्षा से संबंधित सुझाव स्त्री शिक्षा का विशेष विकास नहीं कर सके।

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